Chhath Puja
Chhath Pujaछठ पूजा: नदी की लहरों की मधुर धुन के बीच 'कांच ही बांस के बहंगिया' जैसे लोकगीत सुनकर हर कोई भावुक हो जाता है। अस्ताचल सूर्य, रंगीन आसमान और दीपों की चमक से भरे नदियों के किनारे छठ पर्व की महिमा का वर्णन किया जाता है। जब सुहागिनें कठिन उपवास के साथ सूर्य देवता से अपने परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करती हैं, तो यह दृश्य इतना दिव्य होता है कि हर कोई इसमें खो जाना चाहता है। भारत में त्योहार केवल पूजा नहीं होते, बल्कि ये भावनाओं का उत्सव होते हैं। छठ पूजा, जो हर साल सूर्य देव और छठी मैया के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक बनकर लाखों लोगों को जोड़ती है, अब केवल बिहार और झारखंड तक सीमित नहीं रह गई है। यह पर्व अब विश्व के हर कोने में अपनी रौशनी फैला रहा है।
परंपरा और आस्था का संगम सदियों पुरानी परंपरा, पर आज भी कायम है अटूट आस्था
छठ पूजा की जड़ें गहरी हैं, जैसे गंगा की धारा। यह पर्व वैदिक काल से प्रचलित है, जब लोग सूर्य की उपासना कर जीवन में ऊर्जा और समृद्धि की कामना करते थे।
चार दिनों का यह व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह अनुशासन और आत्मसंयम का अभ्यास भी है। व्रती महिलाएं बिना जल ग्रहण किए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह आस्था, त्याग और नारीशक्ति का अनूठा संगम है।
छठ पूजा का वैश्विक विस्तार बिहार से नेपाल और अब पूरी दुनिया भर में मनाया जा रहा ये पर्व
बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों से शुरू हुई यह आस्था अब नेपाल के मधेशी क्षेत्रों में भी गहराई से रच-बस गई है। जनकपुर, वीरगंज और बारा जैसे शहरों में जब घाटों पर दीप जलते हैं, तो पूरा वातावरण भक्ति में डूब जाता है। जब लोग विदेश में अपनी रोज़ी-रोटी की तलाश में गए, तो छठ की संस्कृति भी अपने साथ ले गए। मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और त्रिनिदाद जैसे देशों में भारतीय मूल के लोग इस पर्व को उसी भाव से मनाते हैं जैसे अपने गांव में बड़े बुजुर्गों के साथ मनाते थे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छठ पूजा जब न्यू जर्सी में भी अब गूंजते हैं छठ के प्रचलित लोकगीत
छठ पूजा का आयोजन अब केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दुबई जैसे देशों में भी श्रद्धा और उत्साह के साथ होता है।
न्यू जर्सी में जब महिलाएं झील के किनारे मिट्टी के दीये जलाकर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं, तो वहां उपस्थित हर प्रवासी भारतीय अपने गांव की यादों में खो जाता है। विदेशी धरती पर भारतीय परंपराओं का हर कोई साक्षी बनता है।
महानगरों में छठ पूजा का नया रूप छठ पर्व अब महानगरों की भी बन गई है नई पहचान
भारत के बड़े शहरों में भी छठ का रंग बदल चुका है। दिल्ली के यमुना घाट से लेकर मुंबई के जुहू बीच तक, हजारों श्रद्धालु एक साथ अर्घ्य देने के लिए इकट्ठा होते हैं।
यह दृश्य केवल पूजा का नहीं, बल्कि अपनों से मिलने और अपनी जड़ों को महसूस करने का होता है। कामकाजी महिलाएं, युवा पीढ़ी और बच्चे सभी इस पर्व के माध्यम से अपनी परंपरा से फिर से जुड़ते हैं।
सोशल मीडिया का योगदान सोशल मीडिया ने बनाया छठ को ग्लोबल पर्व
इंटरनेट ने इस परंपरा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। अब छठ पूजा केवल घाटों तक सीमित नहीं रह गई, यह लाइव स्क्रीन और डिजिटल आस्था का हिस्सा बन चुकी है। लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपने पूजा अनुष्ठान की लाइव स्ट्रीमिंग करते हैं। सिडनी या न्यूयॉर्क में बैठे लोग भी अपने गांव के घाट से सूर्य को अर्घ्य देने का अनुभव साझा कर सकते हैं।
यह तकनीकी जुड़ाव छठ पूजा को एक वैश्विक परिवार की भावना में बदल रहा है, जहां न दूरी मायने रखती है, न सीमाएं।
छठ पूजा की पहचान
अब विदेश में रहने वाले भारतीयों और नेपाली समुदायों के लिए छठ पूजा केवल पूजा नहीं, बल्कि यह अपनी पहचान का उत्सव बन चुका है। जब लोग सात समंदर पार मिट्टी के दीप जलाकर सूर्य को प्रणाम करते हैं, तो वे न केवल देवता को धन्यवाद देते हैं, बल्कि अपनी जड़ों को भी याद करते हैं। छठ पूजा इस बात की साक्षी है कि संस्कृति कभी मरती नहीं, वह केवल रूप बदलती है।
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